शहनाज़ भाटिया, अर्की : दिव्य ज्योति जागृति संस्थान द्वारा अर्की नगर में मासिक सत्संग का आयोजन किया गया जिसमें आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी सोनिया भारती ने सत्संग प्रवचन किए।
उन्होंने गुरु तथा शिष्य की महिमा का बखान किया तथा इतिहास से उदाहरण देते हुए बताया कि अतीत में ऐसे महान संत हुए हैं जिन्होंने गुरु के पद तथा प्रतिष्ठा को महानता तक पहुंचाया साथ ही समय-समय पर ऐसे गुरु भक्त शिष्य भी हुए हैं जिन्होंने सच्चे शिष्य के तौर पर अपना नाम दुनिया में अमर कर दिया।
कुछ ऐसी ही कहानी रामकृष्ण परमहंस तथा उनके शिष्य नरेंद्र अर्थात विवेकानंद की रही है। रामकृष्ण परमहंस ने नरेंद्र को विवेकानंद नाम दिया तथा संसार की सबसे विलक्षण वस्तु के रूप में ईश्वर भक्ति प्रदान की।
साध्वी सोनिया भारती ने कहा कि सतगुरु से मिलने के बाद शिष्य वैदेही हो जाता है अर्थात उसे संसार की मोह माया तथा सुख दुख ज्यादा प्रभावित नहीं करते। वह राजा जनक की तरह हर समय ईश्वर सिमरन में लीन रहता है। उन्होंने कहा सच्चे भक्तों की परीक्षा भी होती है तथा ब्रह्मज्ञान की बदौलत वे हर परीक्षा में पास भी होते हैं।
उन्होंने कहा कि चौरासी लाख जन्मों के बाद हमें ये मानव देह मिलती है तथा इस देह प्राप्ति के बाद मनुष्य का एकमात्र लक्ष्य ईश्वर भक्ति तथा ईश्वर से मिलन होना चाहिए। मनुष्य यह जानते हुए भी सांसारिक मोहमाया में उलझा रहता है,परिणाम स्वरूप ईश्वर से दूर होता जाता है। लेकिन यदि जीवन में सद्गुरु मिल जाए तो वह मनुष्य को ईश्वर प्राप्ति करवा देते हैं।