धार्मिक ग्रंथों में वर्णित है कि, मंदिर का गर्भगृह मंदिर का हृदय स्थान होता है इस में मंदिर के देवी या देवता की मूल मूर्ति को स्थापित किया जाता है। यही वह स्थान होता है जहां देवताओं को स्नान, भोग और विश्राम करवाया जाता है साथ ही इसी स्थान पर पूजा पाठ का भी विधान होता है।

देवी-देवता की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा करने के बाद यह स्थान अत्यंत पवित्र हो जाता है। हिंदू धर्म के प्रमुख मंदिर और उनका गर्भगृह वास्तु शास्त्र के अनुसार बनाए गए हैं जिसके दरवाज़े छोटे रखे जाते हैं, ऐसा इसलिए कि परमात्मा के सामने छोटा-बड़ा हर व्यक्ति सिर झुकाकर जाए। इनमें भक्तों के दर्शन का स्थान और परिक्रमा स्थान भी बनाया जाता है।

इस स्थान में प्रमुख देवता की मूर्ति के साथ ही उनके परिवार के सदस्यों की मूर्तियां भी स्थापित की जाती है जैसे शिव जी के देवस्थान में माता पार्वती और उनके पुत्रों की मूर्तियां होती हैं, वहीं विष्णु जी के साथ लक्ष्मी और राम जी के साथ-सीता आदि । इसके अलावा गर्भगृह के द्वार खोलने और बंद करने का भी नियम होता है, सुबह एक नियत समय पर ही द्वार खोले जाते हैं और सही समय पर ही बंद किए जाते हैं |

आखिर क्यों हर बड़े मन्दिर में बनाया जाता है गर्भगृह

हिंदू धर्म में हर बड़े मंदिर में गर्भगृह इसलिए बनाया जाता है, ताकि देवस्थान की पवित्रता बनी रहे। इस में वही पुजारी भगवान को भोग लगाता है जो पूरी पवित्रता बनाए रखे हो। इस स्थान में हर किसी को जाने की इजाजत नहीं दी जाती, अगर हर व्यक्ति की पहुंच यहां तक होगी तो देव स्थान की पवित्रता भंग हो सकती है।

गर्भगृह में प्राण प्रतिष्ठा के बाद हमेशा सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है, माना जाता है कि पवित्रता बरतते हुए अगर कोई इस स्थान में प्रवेश करता है तो उसके सभी कष्ट समाप्त हो सकते हैं। यह एक ऐसा स्थान होता है जहां ऊर्जा और शांति का वास रहता है। साथ ही, इस स्थान में बहुत कम लोगों को ही जाने की इजाजत होती है इसलिए हर मंदिर में गर्भगृह का होना अनिवार्य होता है। यह स्थान एकांत में होता है इसलिए देवी-देवताओं को आसानी से यहां स्नान, भोग आदि लगाया जा सकता है।

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