हिमाचल प्रदेश में अगस्त माह के लिए सरकारी विभागों के कर्मचारियों और पेंशनरों को वेतन और पेंशन मिलने में देरी हो रही है। सोमवार को 2 सितंबर बीतने के बावजूद भी वेतन और पेंशन खातों में नहीं पहुंची, जिससे कर्मचारियों और पेंशनरों में बेचैनी बढ़ गई है। वित्त विभाग के सूत्रों के अनुसार, वेतन का भुगतान 5 सितंबर तक और पेंशन का भुगतान उसके बाद किया जाएगा।

देरी का कारण:

सूत्रों के अनुसार, राज्य सरकार कर्ज लेकर वेतन और पेंशन का भुगतान करने से बचना चाहती है, क्योंकि इससे राज्य को प्रति माह तीन करोड़ रुपये का ब्याज देना पड़ता है। इस ब्याज का सालाना खर्च 36 करोड़ रुपये तक पहुंच जाता है। वित्तीय प्रबंधन के तहत सरकार ने वेतन और पेंशन के भुगतान को 5 सितंबर के बाद करने का निर्णय लिया है, जिससे कर्ज के बोझ को कम किया जा सके।

कर्मचारियों की चिंता:

हिमाचल प्रदेश अराजपत्रित सेवाएं कर्मचारी महासंघ (प्रदीप गुट) के अध्यक्ष प्रदीप ठाकुर और हिमाचल प्रदेश सयुंक्त कर्मचारी महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष वीरेंद्र चौहान ने इस मुद्दे को मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू के सामने उठाने की बात कही है। कर्मचारी और पेंशनर, जो पहले से ही वित्तीय समस्याओं का सामना कर रहे हैं, इस देरी से और अधिक चिंतित हैं, विशेष रूप से वे कर्मचारी जिन्होंने बैंकों से लोन लिया हुआ है और जिनकी किस्तें दो से पांच तारीख के बीच में कटती हैं।

वित्तीय प्रबंधन और राज्य सरकार की स्थिति:

हिमाचल प्रदेश में वेतन और पेंशन संबंधी खर्चों पर सालाना 25,000 करोड़ रुपये खर्च होते हैं। इनमें हर महीने लगभग 2,000 से 2,200 करोड़ रुपये वेतन, पेंशन, और अन्य भत्तों पर व्यय होते हैं। राज्य की वित्तीय स्थिति को स्थिर रखने के लिए, मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने मंत्रियों और विधायकों का वेतन और भत्ते भी दो महीने आगे विलंबित कर दिए हैं।

नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने राज्य की आर्थिक स्थिति को “आर्थिक आपातकाल” जैसी गंभीर स्थिति करार दिया है। हालांकि, मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने राज्य में आर्थिक संकट की बात को नकारते हुए कहा है कि यह वित्तीय अनुशासन बनाए रखने का एक प्रयास है।

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