हिमाचल प्रदेश के दलगांव में आयोजित ऐतिहासिक भूंडा महायज्ञ के दूसरे दिन शुक्रवार को प्रमुख वैदिक अनुष्ठानों का आयोजन हुआ। कार्यक्रम की शुरुआत रास मंडल विसर्जन से हुई, जिसके बाद पूरे गांव की परिक्रमा (फेर) की गई। अंत में, बकरालू देवता के ऐतिहासिक मंदिर की छत पर वैदिक परंपरा अनुसार शिखा पूजन की रस्म पूरी हुई।

शुक्रवार का दिन हजारों श्रद्धालुओं के लिए ऐतिहासिक बन गया, जो 40 वर्षों से इस पल का इंतजार कर रहे थे। दिनभर जयकारों, ढोल-नगाड़ों और नाटियों की गूंज से दलगांव जीवंत हो उठा।

सुबह 9 बजे देवता बौंद्रा, देवता मोहरिश, और देवता महेश्वर की पूजा-अर्चना के साथ अनुष्ठान शुरू हुआ। वैदिक पंडितों द्वारा रास मंडल का लेखन और पूजा की प्रक्रिया संपन्न की गई। इसके बाद देवताओं ने रास मंडल को सिर लगाकर अनुष्ठान को पूर्ण किया

साढ़े 11 बजे से सवा 4 बजे तक पूरे दलगांव की परिक्रमा की रस्म निभाई गई। देवता मोहरिश की पालकी के साथ रंटाड़ी गांव के लोग हथियारों और डंडों के साथ नाचते-गाते मंदिर पहुंचे।

मंदिर की छत पर चार दिशाओं का वैदिक पूजन किया गया और मंत्रोच्चारण के साथ तीर चलाकर अदृश्य आसुरी शक्तियों को रोकने का अनुष्ठान पूरा किया गया। बकरालू मंदिर के मोतमीन राघनाथ झामटा ने बताया कि शिखा पूजन के बाद शनिवार को बेड़ा रस्म होगी, जिसमें 100 मीटर लंबे आस्था के रस्से पर सूरत राम खाई को पार करेंगे।

हजारों की संख्या में स्थानीय और बाहरी श्रद्धालु इस महायज्ञ का हिस्सा बने। देवता बौंद्रा, मोहरिश, और महेश्वर के खूंदों ने भी उत्सव में सक्रिय भाग लिया।

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