हिमाचल प्रदेश के शिमला जिले के रोहड़ू के दलगांव में 40 साल बाद देवता बकरालू के आशीर्वाद से ‘बेड़ा आरोहण’ की पवित्र रस्म सकुशल संपन्न हुई। शनिवार शाम 5:42 बजे, बेड़ा सूरत राम ने सफेद कफन पहनकर और पवित्र घास से बनी रस्सी पर बैठकर खाई को पार किया। इस अद्भुत परंपरा को देखने हजारों लोग पहुंचे थे।
रस्म शुरू होने से पहले सूरत राम को देवता की पालकी में आयोजन स्थल तक लाया गया। पूजा-अर्चना के बाद, जैसे ही रस्सी पर आरोहण शुरू हुआ, वाद्य यंत्रों पर शोक की धुन बजने लगी। मात्र तीन मिनट में सूरत राम ने दूसरे छोर पर पहुंचकर रस्म को पूरा किया। नीचे पहुंचते ही श्रद्धालुओं में उन्हें देखने और पंचरत्न लेने की होड़ मच गई।
प्रशासन ने इस आयोजन की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए थे। रस्सी के नीचे जाली लगाई गई थी ताकि किसी अनहोनी को टाला जा सके। आयोजन स्थल पर तिल धरने की जगह नहीं थी। रस्सी पर चढ़ाई के दौरान एक बार रस्सी टूटने से रस्म में देरी हुई, लेकिन दूसरी रस्सी के सहारे रस्म को पूर्ण किया गया।
पारंपरिक रूप से, बेड़ा की पत्नी को विधवा स्वरूप में पूजा-अर्चना करते हुए देखा जाता था, लेकिन अब यह परंपरा समाप्त कर दी गई है। रस्म के अंत में सूरत राम को श्रद्धालुओं ने कंधे पर उठाकर देवता के मंदिर तक पहुंचाया। उन्हें भेंटस्वरूप नकदी और वस्त्र दिए गए।
देवता बकरालू के मोतमीन रधुनाथ झामटा ने बताया कि इस रस्म को देवताओं के आशीर्वाद से पूरी परंपरा के अनुसार निभाया गया। इस ऐतिहासिक आयोजन ने न केवल श्रद्धालुओं को रोमांचित किया बल्कि क्षेत्र की पौराणिक आस्था को पुनर्जीवित किया।