भारतीय परंपरा में घर में मंदिर का विशेष महत्व है। घर में मंदिर की स्थापना सही दिशा में करने से सुख-समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार, घर में मंदिर ईशान कोण (पूर्व-उत्तर दिशा) में होना शुभ माना गया है।
ईशान कोण में मंदिर स्थापित करने से जीवन में धन, वैभव, और मान-सम्मान की प्राप्ति होती है। यह दिशा देवताओं का वास स्थान है और इसे बुद्धि और विवेक का प्रतीक भी माना जाता है।
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मंदिर के लिए उपयुक्त दिशाएं
- ईशान कोण: सबसे शुभ दिशा।
- पूर्व दिशा: शुभता और सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ावा देती है।
- पश्चिम दिशा: इस दिशा में मंदिर रखना भी लाभकारी हो सकता है।
दक्षिण दिशा में मंदिर क्यों न बनाएं?
वास्तु शास्त्र के अनुसार, दक्षिण दिशा में मंदिर बनाने की मनाही है। यह दिशा पितरों का स्थान मानी जाती है, और यहां मंदिर स्थापित करने से पितृदोष लग सकता है। इससे घर में नकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और परिवार को मानसिक, आर्थिक और सामाजिक परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
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मंदिर में भगवान की मूर्ति का मुख किस दिशा में होना चाहिए?
- भगवान की मूर्ति का मुख पूर्व या पश्चिम दिशा की ओर होना चाहिए।
- दक्षिण मुखी मूर्ति की स्थापना से बचें।
मंदिर के वास्तु नियम
- मंदिर को साफ और पवित्र रखें।
- मंदिर का स्थान रसोई या शौचालय के पास न हो।
- दीपक और पूजा सामग्री को व्यवस्थित रखें।
- प्रतिदिन पूजा और आरती करें।