राजस्व, बागवानी, जनजातीय विकास एवं जन शिकायत निवारण मंत्री जगत सिंह नेगी ने कहा है कि वन अधिकार अधिनियम 2006 (FRA) एक ऐतिहासिक और जनकल्याणकारी कानून है, जिसका उद्देश्य लंबे समय से वन भूमि पर रह रहे लोगों को कानूनी अधिकार प्रदान करना है।
वे जनजातीय विकास विभाग द्वारा आयोजित मंडल स्तरीय कार्यशाला एवं जन संवाद को संबोधित कर रहे थे।
कार्यक्रम में विधानसभा उपाध्यक्ष विनय कुमार और कसौली विधायक विनोद सुल्तानपुरी विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित रहे।
मंत्री ने कहा कि प्रदेश सरकार अधिनियम को पूरे हिमाचल में लागू करने जा रही है। उन्होंने सभी पंचायतों में वन अधिकार समितियाँ गठित करने और लोगों को जागरूक करने के लिए प्रचार अभियान चलाने के निर्देश अधिकारियों को दिए।
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उन्होंने बताया कि दावेदारों को उनका वन भूमि पर मालिकाना हक दिलाने के लिए तीन स्तरों—ग्राम सभा, उपमंडल समिति और ज़िला स्तरीय समिति—द्वारा सत्यापन और स्वीकृति की प्रक्रिया अपनाई जाएगी। अंततः पात्र नागरिक को वन अधिकार मान्यता पत्र प्रदान किया जाएगा।
मंत्री ने सभी राजस्व अधिकारियों को 31 मई तक बैठकों का आयोजन करने का निर्देश भी दिया। उन्होंने यह भी बताया कि पात्र व्यक्ति को निर्धारित फार्म में दावा करना होगा और 13 दिसंबर 2005 से पहले भूमि पर रहन-सहन, खेती, चरवाहगी या घास लाने जैसी गतिविधियों का साक्ष्य देना होगा।
सोलन के उपायुक्त मनमोहन शर्मा ने सभी अतिथियों का स्वागत किया। कार्यशाला में शिमला, सोलन, सिरमौर और किन्नौर ज़िलों के पंचायत प्रतिनिधि, अधिकारी और NGOs से करीब 300 लोगों ने भाग लिया।
कार्यशाला में उपस्थित अन्य गणमान्य व्यक्ति:
डॉ. राजेश्वर चंदेल (कुलपति, वानिकी एवं बागवानी विश्वविद्यालय नौणी)
अनुपम कश्यप (उपायुक्त, शिमला)
सुमित खिमटा (उपायुक्त, सिरमौर)
डॉ. अमित कुमार शर्मा (उपायुक्त, किन्नौर)
डॉ. विक्रम सिंह नेगी (संयुक्त सचिव, जनजातीय विकास)
कैलाश चौहान (संयुक्त निदेशक)
कार्यशाला में जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों के सवालों का मंत्री ने सीधे उत्तर दिया।
गैर सरकारी संगठनों ने इसे सरकार की ऐतिहासिक पहल करार दिया और उम्मीद जताई कि इससे वनभूमि पर रहने वाले हजारों परिवारों को अधिकार मिलेंगे।