पूर्णिमा से लेकर अमावस्या तक का समय पितरों को याद करने के लिए श्राद्धों का आयोजन किया जाता है। सबसे पहला श्राद्ध पूर्णिमा से शुरू होता है जिन पितरों का देहांत पूर्णिमा के दिन हुआ हो, उनका श्राद्ध पूर्णिमा तिथि के दिन किया जाता है.

इन 15 दिनों में सभी अपने पितरों का उनकी निश्चित तिथि पर तर्पण, श्राद्ध करते हैं हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार ऐसा करने से पितर प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद देकर प्रस्थान करते हैं अमावस्या के दिन पितरों को विदा दी जाती है.

11 सितम्बर को सूर्योदय के साथ हो आश्विन कृष्ण पक्ष प्रतिपदा तिथि लग रही है अत: पितृ पक्ष का आरम्भ 11 सितम्बर को हो जाएगा परंतु पूर्णिमा का श्राद्ध कर्म भाद्रपद शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को ही किया जाता है जो 10 सितंबर दिन शनिवार को है इसलिए महालय का आरम्भ 10 सितंबर शनिवार से ही हो जाएगा.

पूर्णिमा का श्राद्ध एवं तर्पण 10 सितंबर दिन शनिवार  प्रतिपदा का श्राद्ध एवं तर्पण 11 सितंबर दिन रविवार 
द्वितीया का श्राद्ध एवं तर्पण12 सितम्बर दिन सोमवार 
तृतीया का श्राद्ध एवं तर्पण 13 सितंबर दिन मंगलवार
चतुर्थी का श्राद्ध एवं तर्पण 14 सितंबर दिन बुधवार 
पंचमी का श्राद्ध एवं तर्पण 15 सितंबर दिन गुरुवार
षष्ठी का श्राद्ध एवं तर्पण 16 सितंबर दिन शुक्रवार 
सप्तमी का श्राद्ध एवं तर्पण 17 सितंबर दिन शनिवार
अष्टमी का श्राद्ध एवं तर्पण 18 सितंबर दिन रविवार 
नवमी का श्राद्ध एवं तर्पण 19 सितंबर दिन सोमवार 
दशमी का श्राद्ध एवं तर्पण 20 सितंबर दिन मंगलवार 
एकादशी का श्राद्ध तर्पण 21 सितंबर दिन बुधवार 
द्वादशी का श्राद्ध एवं तर्पण 22 सितंबर दिन गुरुवार
त्रयोदशी का श्राद्ध एवं तर्पण 23 सितंबर दिन शुक्रवार 
चतुर्दशी का श्राद्ध एवं तर्पण 24 सितंबर दिन शनिवार
अमावस्या का श्राद्ध एवं तर्पण 25 सितंबर दिन रविवार

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