सनातन धर्म को संगठित और संरक्षित करने के लिए आदिगुरू शंकराचार्य ने 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व में चार धाम पीठों और अखाड़ों की स्थापना की। उनके समय में भारतीय समाज आक्रमणों, धार्मिक भ्रम और सामाजिक अस्थिरता से ग्रसित था। शंकराचार्य ने न केवल धर्म की रक्षा की, बल्कि सामाजिक, धार्मिक, और सांस्कृतिक चेतना को जागृत किया।
चार पीठों की स्थापना
शंकराचार्य ने भारतीय जनमानस को एकजुट करने के लिए चार प्रमुख पीठों की स्थापना की:
- गोवर्धन पीठ (पुरी): पूर्व दिशा में स्थित यह पीठ भगवान जगन्नाथ को समर्पित है।
- शारदा पीठ (श्रृंगेरी): दक्षिण दिशा में, यह पीठ देवी सरस्वती की पूजा का केंद्र है।
- द्वारिका पीठ (गुजरात): पश्चिम दिशा में स्थित यह पीठ भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है।
- ज्योतिर्मठ पीठ (उत्तराखंड): उत्तर दिशा में स्थित, यह पीठ भगवान बद्रीनाथ की आराधना का स्थान है।
अखाड़ों की स्थापना का उद्देश्य
अखाड़ों की स्थापना धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए की गई थी। इनका मुख्य उद्देश्य मठों और मंदिरों को आक्रमणकारियों से बचाना, धर्म का प्रचार करना, और समाज में आध्यात्मिक चेतना का प्रसार करना था। अखाड़े साधुओं और नागाओं को शस्त्र संचालन और व्यायाम में प्रशिक्षित करते थे।
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प्रमुख अखाड़े और उनका इतिहास
भारत में वर्तमान में 13 प्रमुख अखाड़े हैं, जिनकी स्थापना अलग-अलग समय और स्थानों पर हुई। ये सभी अखाड़े धर्म और संस्कृति की रक्षा में अहम भूमिका निभाते आए हैं।
श्री निरंजनी अखाड़ा (826 ईस्वी):
भगवान कार्तिकेय को समर्पित यह अखाड़ा गुजरात के मांडवी में स्थापित हुआ। इसकी शाखाएं हरिद्वार, प्रयागराज और उज्जैन में हैं।जूना अखाड़ा (1145 ईस्वी):
भगवान दत्तात्रेय को समर्पित यह अखाड़ा उत्तराखंड के कर्णप्रयाग में स्थापित हुआ। हरिद्वार के मायादेवी मंदिर के पास इसका मुख्य आश्रम है।श्री महानिर्वाणी अखाड़ा (671 ईस्वी):
कपिल महामुनि को समर्पित इस अखाड़े की शाखाएं हरिद्वार, उज्जैन और त्र्यंबकेश्वर में हैं।श्री अटल अखाड़ा (569 ईस्वी):
यह भगवान गणेश को समर्पित सबसे प्राचीन अखाड़ों में से एक है। इसकी मुख्य पीठ गोंडवाना क्षेत्र में है।श्री पंचायती अखाड़ा:
यह अखाड़ा 1784 में हरिद्वार कुंभ मेले में स्थापित हुआ। इसके अनुयायी गुरु ग्रंथ साहिब की पूजा करते हैं।
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नागा साधुओं की वीरता और योगदान
नागा साधुओं ने भारतीय संस्कृति और धर्म की रक्षा में अपना अप्रतिम योगदान दिया है। अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण के दौरान गोकुल की रक्षा के लिए नागा साधुओं ने अद्वितीय साहस का प्रदर्शन किया।
आधुनिक समय में अखाड़ों की भूमिका
भारत की स्वतंत्रता के बाद अखाड़ों ने अपना सैन्य स्वरूप त्याग दिया। वर्तमान में ये अखाड़े सनातन धर्म के प्रचार, वेद-पुराणों के अध्ययन और सांस्कृतिक चेतना के प्रसार में लगे हुए हैं।
अखाड़ों का कुंभ मेले में महत्व
महाकुंभ मेले में अखाड़ों का विशेष महत्व है। नागा साधुओं के शाही स्नान का दृश्य श्रद्धालुओं को अत्यधिक आकर्षित करता है।
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अखाड़ों की वर्तमान संरचना
आज प्रत्येक अखाड़े का संचालन एक महंत के नेतृत्व में होता है। ये अखाड़े संयम, तपस्या और सेवा को अपने मूल सिद्धांत मानते हैं।
अखाड़ों के माध्यम से सनातन धर्म का संदेश
आदिगुरू शंकराचार्य द्वारा स्थापित अखाड़े आज भी सनातन धर्म की परंपराओं को जीवित रखे हुए हैं। ये अखाड़े भारतीय संस्कृति के ध्वजवाहक हैं और हमें यह प्रेरणा देते हैं कि धर्म की रक्षा के लिए हमेशा तत्पर रहना चाहिए।