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ब्रह्मचारियों की गद्दी डेरा बाबा रुद्र की स्थापना बसंत पंचमी 1850 को हुई थी। इसी दिन यहां अखंड धूना विराजमान किया गया, जो आज भी बिना रुके जल रहा है।
सदाव्रत लंगर की शुरुआत
आदि गुरु अमरयोगी बाबा रुद्रानंद जी के करकमलों से 1874 में सदाव्रत लंगर शुरू हुआ, जो आज भी श्रद्धालुओं के लिए उपलब्ध है। इस डेरे का संचालन पहले महंत परमानंद जी ने किया, फिर अन्य महात्माओं को यह जिम्मेदारी सौंपी गई।
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स्वामी सुग्रीवानंद जी की गद्दी पर प्रतिष्ठा
1952 में स्वामी सुग्रीवानंद जी महाराज को इस गद्दी पर विराजमान किया गया, जिन्होंने इस परंपरा को आगे बढ़ाया।
31 लाख गायत्री मंत्रों का जाप
पंचभीष्म के दिन इस आश्रम में 31 लाख गायत्री मंत्रों का जाप किया जाता है, जिससे आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार होता है।
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श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र
डेरा बाबा रुद्र में देशभर से श्रद्धालु आते हैं और अखंड धूना की ज्योति के दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। यहां आने वाले भक्तों को आध्यात्मिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा की अनुभूति होती है।
डेरा बाबा रुद्र का यह धाम भक्तों की आस्था का अद्भुत केंद्र है, जहां भक्ति और सेवा का संगम देखने को मिलता है।