Periods में ये 6 गलतियां करना पड़ सकता है मंहगा
माहवारी कोई बीमारी नहीं अपितु महिलाओं को प्रकृति का एक अनमोल तोहफा है, जो महिलाओं को पूर्ण बनाता है.माहवारी के दौरान शर्म की जगह गर्व महसूस करना चाहिए, क्योंकि वे पूर्ण हैं.लेकिन इस दौरान आपको कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए .
1. जानकारी है बेहद जरूरी
हर लड़की को माहवारी की समस्या से जूझना पड़ता है लेकिन यह समस्या तब और बड़ी लगने लगती है जब बिना किसी जानकारी के इस से निपटना पड़ता है .लड़कियां झिझक के कारण किसी से माहवारी के विषय में बात नहीं करतीं नतीजन अचानक पीरियड्स शुरू हो जाते हैं और वे घबरा जाती हैं.
सभी मांओं को अपनी बेटियों को उन के शरीर में होने वाले प्राकृतिक बदलावों के बारे में पहले से बताना चाहिए. ऐसा करने से मांएं अपनी बेटियों को बेवजह तनाव का शिकार बनने से रोक पाएंगी.
2. अपने कि उपेक्षित न महसूस करें
पुरानी रीतियों और रिवाजों के तहत माहवारी के दौरान लड़कियों पर कई तरह की पाबंदियां लगा दी जाती हैं. इस तरह की टोकाटाकी से लड़कियां खुद को उपेक्षित महसूस करने लगती हैं. माहवारी के आते ही वे खुद को अपराधी सा महसूस करने लगती हैं.
इस तरह के मानसिक बदलाव के कारण रक्तस्राव में फर्क पड़ता है. किसी को रक्तस्राव अधिक होने लगता है तो किसी को बहुत कम. लेकिन इस स्थिति में बिलकुल भी तनाव नहीं लेना चाहिए.
3. अपनी साफ सफाई का रखें ख्याल
माहवारी के समय नहाना बेहद जरूरी है. इस समय तो शरीर की साफसफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए खासकर योनि व उस के आसपास की सफाई बेहद जरूरी है.
4. सैनिटरी नैपकिन का प्रयोग
कई महिलाएं सैनिटरी नैपकिन को कहीं भी रख देती हैं. जबकि ऐसा नहीं करना चाहिए. खासतौर पर खुले और इस्तेमाल किए जाने वाले सैनिटरी नैपकिन को हमेशा साफसुथरे स्थान पर रखना चाहिए.
5. सैनिटरी नैपकिन कैसा हो
माहवारी की जानकारी तब तक अधूरी है जब तक आप सही सैनिटरी नैपकिन के चुनाव के बारे में न पता हो . आजकल मार्केट में कई वैराइटी में सैनिटरी नैपकिन उपलब्ध हैं लेकिन कौटन लेयर वाले स्लिम सैनिटरी नैपकिन इस्तेमाल करना चाहिए.
माहवारी के दौरान हर 6 घंटे के अंतराल पर नैपकिन बदलते रहना चाहिए. फिर चाहे रक्तस्राव कम हो रहा हो या अधिक और वही सैनिटरी नैपकिन इस्तेमाल करे, जो गीलेपन को सोख कर जैल में परिवर्तित कर दे.
6.परेशानी को बेझिझक साँझा करें
माहवारी की शुरुआत में लड़कियों को कई प्रकार की तकलीफें होती हैं, जिन्हें बताने में वे हिचकिचाहट महसूस करती हैं इसलिए समय समय पर मांओं को खुद भी बेटियों से पूछते रहना चाहिए कि उन्हें किस तरह की समस्या आ रही है. साथ ही बेटियों को भी बिना किसी हिचकिचाहट के अपनी मांओं को अपनी परेशानी बतानी चाहिए ताकि समय रहते उस का इलाज करवाया जा सके.
Disclaimer : यह आर्टिकल संग्रहित की गयी जानकारियों के अनुसार लिखा गया है . कोई भी जानकारी के लिए डॉक्टरी परामर्श आवश्यक है .