डिजिटल युग में स्मार्ट डिवाइसेज, विशेषकर स्मार्टफोन, लोगों की जिंदगी का अभिन्न हिस्सा बन गए हैं। हर उम्र के लोगों के लिए ये डिवाइसेज न केवल मनोरंजन का साधन हैं बल्कि जानकारी और कनेक्टिविटी का मुख्य स्रोत भी बन चुके हैं। लेकिन कहते हैं कि किसी चीज की हद से ज्यादा आदत, लत बन जाती है। यह लत अब बच्चों को भी जकड़ने लगी है, जो उनके शारीरिक और मानसिक विकास के लिए खतरनाक साबित हो रही है।
इसी खतरे को भांपते हुए, फ्रांस सरकार ने एक बड़ा और एतिहासिक फैसला लिया है। सरकार ने घोषणा की है कि 15 साल या उससे कम उम्र के छात्रों के लिए स्कूल में स्मार्टफोन और अन्य इलेक्ट्रॉनिक कम्युनिकेशन डिवाइसेज जैसे टैबलेट्स और स्मार्टवॉच के इस्तेमाल पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाया जाएगा।
यह भी पढ़ें : जियो के 84 दिनों की वैधता वाले प्रीपेड प्लान्स: प्रतिदिन 2GB डाटा के साथ जानें पांच बेहतरीन विकल्प
बैन के दायरे और विशेष परिस्थितियों में छूट :
फ्रांस सरकार द्वारा जारी प्रेस रिलीज में इस बैन के विस्तृत नियम बताए गए हैं। यह बैन स्कूल के समय के दौरान ही नहीं, बल्कि स्कूल द्वारा आयोजित की जाने वाली अतिरिक्त पाठ्यक्रम गतिविधियों के समय भी लागू रहेगा। इसके अलावा, स्कूल प्रांगण के बाहर होने वाली ऐसी गतिविधियाँ, जो स्कूल से संबंधित हैं, उन पर भी यह प्रतिबंध लागू होगा।
हालांकि, कुछ परिस्थितियों में इस बैन से छूट भी दी जाएगी। उदाहरण के लिए, विकलांग या किसी विशेष चिकित्सा स्थिति से पीड़ित बच्चों को, जो मेडिकल डिवाइसेज के रूप में स्मार्टफोन का इस्तेमाल करते हैं, उन्हें इससे बाहर रखा गया है। इसके अलावा, स्कूल प्रशासन को विशेष परिस्थितियों में छात्रों को स्मार्टफोन के इस्तेमाल की अनुमति देने का अधिकार होगा, लेकिन इसके लिए स्पष्ट दिशानिर्देश तैयार किए जाएंगे।
स्मार्टफोन की लत से जुड़े खतरे :
एक्सपर्ट्स का मानना है कि स्मार्टफोन का अत्यधिक इस्तेमाल युवाओं और बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास को बाधित कर सकता है। यह उनके ध्यान केंद्रित करने की क्षमता को कम करता है, नींद में बाधा डालता है, और सामाजिक गतिविधियों में उनकी भागीदारी को भी प्रभावित करता है। इसलिए, फ्रांस का यह निर्णय न केवल बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए महत्वपूर्ण है बल्कि यह अन्य देशों के लिए भी एक प्रेरणा बन सकता है।
फ्रांस द्वारा उठाए गए इस कदम का मुख्य उद्देश्य बच्चों को स्मार्टफोन की लत से बचाना और उनके शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य को सुरक्षित रखना है। यह निर्णय अन्य देशों और शिक्षण संस्थानों को भी इस दिशा में ठोस कदम उठाने के लिए प्रेरित कर सकता है।