हरतालिका तीज हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण व्रतों में से एक है, जिसे महिलाएं अपने पति के दीर्घायु, स्वस्थ जीवन और वैवाहिक सुख की प्राप्ति के लिए करती हैं। यह व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार, इस दिन पति-पत्नी को एक साथ मिलकर शिव-पार्वती की पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने से उनके बीच आपसी प्रेम और सम्मान बढ़ता है।

पूजा विधि और महत्त्व

हरतालिका तीज पर पूजा की शुरुआत गणेश पूजन से होती है, क्योंकि वे प्रथम पूज्य देव हैं। माना जाता है कि गणेश जी की पूजा से शिव-पार्वती बहुत प्रसन्न होते हैं। गणेश जी को दूर्वा चढ़ाने, मोदक का भोग लगाने और धूप-दीप जलाकर आरती करने के बाद शिव-पार्वती का अभिषेक कर विधिवत पूजा करनी चाहिए।

इस व्रत में महिलाएं दिनभर निराहार रहती हैं, कुछ महिलाएं तो पानी भी नहीं पीतीं। व्रत के दौरान पूजा-पाठ, मंत्र जप, ध्यान, भजन-कीर्तन, और दान-पुण्य जैसे कार्य करने चाहिए। व्रत करने वाली महिलाओं को शिव-पार्वती की कथाएं पढ़नी या सुननी चाहिए।

पौराणिक मान्यताएं

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सबसे पहले देवी पार्वती ने यह व्रत किया था। पार्वती शिव जी को पति के रूप में पाना चाहती थीं और इस कामना को पूरा करने के लिए उन्होंने कठोर तप किया था। उनके तप से प्रसन्न होकर शिव जी ने उन्हें पति के रूप में स्वीकार किया। इसके बाद शिव-पार्वती का विवाह संपन्न हुआ।

दान और पूजा के बाद के कार्य

हरतालिका तीज पर पांच पहर यानी दिनभर में पांच बार पूजा की जाती है। अगले दिन चतुर्थी की सुबह बालूरेत से बनी शिव, पार्वती और गणेश की मूर्तियों की पूजा कर उन्हें जलस्रोत में विसर्जित किया जाता है। इसके बाद दान-पुण्य कर व्रती महिलाएं अन्न-जल ग्रहण करती हैं।

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