हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने शनिवार को अनुसूचित जाति/जनजाति (SC/ST) अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत दर्ज एक एफआईआर को रद्द कर दिया है। यह एफआईआर पूर्व डीजीपी संजय कुंडू, आईपीएस अधिकारी अंजुम आरा और अन्य 8 पुलिस अधिकारियों के खिलाफ दर्ज की गई थी।

शिकायतकर्ता मोना नेगी, जो बर्खास्त कांस्टेबल धर्म सुख नेगी की पत्नी हैं, ने पुलिस अधिकारियों पर आरोप लगाया था कि उन्होंने उनके पति को अन्यायपूर्ण तरीके से नौकरी से बर्खास्त कर उत्पीड़न किया। उनकी शिकायत के आधार पर 2020 में बर्खास्त किए गए धर्म सुख नेगी को लेकर यह मामला दर्ज हुआ था।

मोना नेगी ने अपनी शिकायत में कहा कि उनके पति को मनगढ़ंत आरोपों पर फंसाकर बर्खास्त किया गया। उन्होंने आरोप लगाया कि उनके पति की सेवा अवधि आठ साल शेष थी, फिर भी उनसे 1,43,423 रुपए वसूलने का आदेश दिया गया।

पूर्व डीजीपी संजय कुंडू, आईपीएस अधिकारी अंजुम आरा, पंकज शर्मा और बलदेव दत्त सहित अन्य अधिकारियों ने हाईकोर्ट में एफआईआर को चुनौती दी थी।न्यायमूर्ति वीरेंद्र सिंह की एकल पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए स्पष्ट किया कि एफआईआर तथ्यहीन और निराधार है। अदालत ने कहा कि विभागीय कार्रवाई पूरी तरह से नियमानुसार थी और इसे अपराध मानना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।

अदालत ने कहा कि शिकायत में लगाए गए आरोपों का कोई ठोस आधार नहीं है। इस प्रकार की एफआईआर को जारी रखना न केवल कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है, बल्कि यह सरकारी अधिकारियों के मनोबल पर भी नकारात्मक प्रभाव डालता है।हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद पुलिस विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों को बड़ी राहत मिली है। पूर्व डीजीपी और आईपीएस अधिकारियों के खिलाफ दायर आरोपों को निरस्त कर दिया गया है।

मोना नेगी ने अपने पति के बर्खास्तगी को लेकर मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव और अन्य उच्चाधिकारियों को भी अवगत कराया था। उन्होंने कहा कि उनके पति को झूठे आरोपों में फंसाकर मानसिक और आर्थिक प्रताड़ना दी गई।कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार, हाईकोर्ट का यह फैसला यह दिखाता है कि विभागीय कार्रवाई और अपराध में अंतर समझना आवश्यक है।

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