अफगानिस्तान में कैसे बढ़ेंगी INDIA की मुश्किलें
अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद भारत के कूटनीतिक गलियारे में गंभीर चिंता नजर आ रही है ,आशंका जताई जा रही है कि तालिबान का पूर्ण शासन भारत सहित पूरे इलाके के लिए आतंकवाद की बड़ी चुनौती पेश कर सकता है |
इसके अलावा भारतीय व्यापार व निवेश पर भी प्रतिकूल असर पड़ सकता है ,चीन व पाकिस्तान का तालिबान पर असर रणनीतिक संबंधों के लिहाज से भी भारत के लिए चुनौती पेश कर सकता है।
पूर्व विदेश सचिव शशांक ने कहा कि हमे पहले ये देखना होगा कि तालिबान किसी समझौते के तहत काबुल पहुंचा है या फिर वे बंदूक और आतंक के दम पर सत्ता हथियाने में सफल हुए हैं।अगर उन्होंने आतंकवाद का सहारा लेकर कब्जा किया है तो भारत सहित यूएन के तमाम देशों को सत्ता खारिज करनी होगी।
शशांक ने इस बात की आशंका जताई कि अगर तालिबान पुराने कटररपंथ को अपनाया तो कश्मीर के लिए भी आईएसआई की मिलीभगत से नई सुरक्षा चुनौती सामने आ सकती है। साथ ही पीओके में चीन अफगानिस्तान के जरिये बीआरआई के विस्तार की योजना बना सकता है।
विवेकानंद फाउंडेशन से जुड़े सामरिक जानकार पी के मिश्रा का कहना है कि लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठन जो पाकिस्तान-अफगानिस्तान के सीमावर्ती इलाके में जमे हैं, तालिबान के आने से वह पूरे इलाके में अपना ठिकाना बना सकते हैं।
भारत-अफगानिस्तान व्यापार के लिहाज से बड़े असर की संभावना भी जानकार जता रहे हैं। चाबहार को लेकर विस्तार की जो योजना भारत ने अफगानिस्तान के जरिये बनाई थी उसपर असर पड़ना तय माना जा रहा है क्योंकि चीन और पाकिस्तान तालिबान की मदद से इसमे रोड़ा अटकाने का प्रयास करेंगे।सुशांत सरीन का कहना है कितालिबान के आने से दुनियाभर में इस्लामिक कट्टरपंथ बढ़ने का भी खतरा है और इसका असर भारत पर भी पड़ सकता है।