महाकुंभ मेला भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता का प्रतीक है। यह मेला हर 12 वर्ष में आयोजित होता है, जहां लाखों श्रद्धालु संगम में पवित्र स्नान करते हैं। कुंभ मेले का मुख्य आकर्षण नागा साधु होते हैं। इनके दर्शन और आशीर्वाद के लिए देश-विदेश से लोग आते हैं।
अमृत स्नान और नागा साधु
महाकुंभ में शाही स्नान को ‘अमृत स्नान’ कहा जाता है। इस दिन नागा साधु और संत भव्य जुलूस के साथ संगम में स्नान करते हैं। नागा साधु अपने खास श्रृंगार और अनोखी परंपराओं के लिए जाने जाते हैं।
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नागा साधु बनने की प्रक्रिया
नागा साधु बनने के लिए व्यक्ति को कठोर तप और लंबी साधना से गुजरना पड़ता है।
- समय: नागा साधु बनने में लगभग 12 वर्ष लगते हैं।
- प्रारंभिक चरण: पहले 6 वर्षों में व्यक्ति को लंगोट पहनकर कठिन जीवनशैली अपनानी होती है।
- दीक्षा: कुंभ मेले में अंतिम दीक्षा लेने के बाद साधु लंगोट भी त्याग देते हैं।
नागा साधुओं के प्रमुख अखाड़े
भारत में 13 प्रमुख अखाड़े हैं, जिनमें से 7 अखाड़े नागा साधु तैयार करते हैं। इन अखाड़ों में जूना, महानिर्वाणी, निरंजनी, अटल, अग्नि, आनंद और आवाहन प्रमुख हैं।
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नागा साधुओं का दैनिक जीवन
- सूर्योदय से पहले उठना: नागा साधु सुबह 4 बजे उठते हैं।
- योग और ध्यान: वे हवन, ध्यान, प्राणायाम और कपाल क्रिया करते हैं।
- भोजन: दिन में केवल एक बार भोजन करते हैं।
- विशेष श्रृंगार: नागा साधु 17 प्रकार के श्रृंगार करते हैं, जिनमें भभूत, चंदन, कुंडल, डमरू और रुद्राक्ष शामिल हैं।
महिला नागा साधु
महिला साधुओं को ‘माई’ या ‘अवधूतानी’ कहा जाता है। जूना अखाड़ा ने इन्हें संगठित किया और दशनामी संप्रदाय का हिस्सा बनाया। महिलाएं वस्त्रधारी होती हैं और कुंभ मेले में विशेष भूमिका निभाती हैं।
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नागा साधुओं की परंपरा का इतिहास
नागा साधुओं की परंपरा का आरंभ वेद व्यास और शंकराचार्य ने किया। शंकराचार्य ने चार मठों की स्थापना कर दशनामी परंपरा को संगठित किया। नागा शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के ‘नागा’ से हुई है, जिसका अर्थ है ‘पहाड़’।
नागा साधुओं का प्रमुख कार्य
नागा साधु शिव भक्त होते हैं और दिनभर गुरु सेवा, तपस्या और प्रार्थना में लीन रहते हैं। इनके पास त्रिशूल, चिमटा, कमंडल, और शंख जैसे उपकरण हमेशा रहते हैं।
महाकुंभ में नागा साधुओं का महत्व
नागा साधुओं का कुंभ मेला में विशेष स्थान है। अमृत स्नान के दौरान ये साधु पूरे आयोजन की शोभा बढ़ाते हैं।
नागा साधुओं का समाज में योगदान
- धार्मिक शिक्षा और योग परंपरा का प्रचार
- अध्यात्मिक संदेशों के माध्यम से समाज को प्रेरणा देना
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नागा साधु बनने के बाद मिलने वाले पद
दीक्षा के बाद नागा साधुओं को उनकी योग्यता और साधना के आधार पर विभिन्न पद दिए जाते हैं, जैसे कोतवाल, भंडारी, महंत, और सचिव।
नागा साधु और बच्चों जैसा सरल मन
हालांकि नागा साधुओं का रूप डरावना लग सकता है, लेकिन उनका दिल बच्चों की तरह निर्मल होता है। वे अपने अखाड़ों में खुशी और उत्साह से भरपूर रहते हैं।