मकर संक्रांति भारत में धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण त्योहार है। हिमाचल प्रदेश के मनाली और आसपास के गांवों में यह पर्व विशेष धार्मिक आयोजन का आगाज़ करता है। इस दिन से 11 गांवों में 42 दिनों के लिए देवताओं की तपस्या के चलते विशेष नियम लागू होते हैं।

मनाली क्षेत्र के सिमसा और गौशाल सहित कुल 11 गांवों में मकर संक्रांति पर देव आदेश के तहत टीवी, रेडियो, डीजे और अन्य मनोरंजन साधनों के उपयोग पर पूरी तरह से प्रतिबंध लग जाता है। ग्रामीण इस दौरान किसी भी प्रकार के शोर-शराबे से बचते हैं ताकि देवताओं को शांति से तपस्या करने का वातावरण मिल सके।

मकर संक्रांति के दिन, गौशाल गांव में देवता कंचन नाग, ब्यास और गौतम ऋषि के मंदिरों के कपाट बंद कर दिए जाते हैं। देवता की मूर्ति पर विशेष रूप से कपड़े से छानी गई मिट्टी का लेप लगाया जाता है। पूजा और विधिविधान के बाद मंदिर के द्वार 42 दिनों के लिए बंद कर दिए जाते हैं।

इस दौरान ग्रामीणों को खेती और अन्य कार्यों में भी सीमाएं माननी होती हैं। खेतों में खोदाई जैसे कार्य पूरी तरह प्रतिबंधित रहते हैं। साथ ही, मनोरंजन से जुड़ी गतिविधियां पूरी तरह से स्थगित रहती हैं। गांव के लोग शांति और सादगी के साथ देवताओं की तपस्या का सम्मान करते हैं।

42 दिनों बाद, फागली उत्सव के दौरान मंदिरों के कपाट फिर से खोल दिए जाते हैं। इस दिन ग्रामीण उत्साह और भक्ति के साथ देवताओं की पूजा करते हैं और उत्सव मनाते हैं। यह परंपरा ग्रामीणों के धार्मिक विश्वास और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है

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