प्रयागराज में महाकुंभ के दौरान पवित्र स्नान के लिए बड़ी संख्या में नागा साधु और संन्यासी आते हैं। उनकी जीवनशैली और त्याग हमेशा ही आम लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र रही है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि कोई व्यक्ति साधु क्यों बनता है? इसका संबंध उसकी कुंडली और शनि ग्रह से हो सकता है।
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ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, कुंडली का लग्न (पहला भाव) व्यक्ति के स्वभाव और मानसिक स्थिति को दर्शाता है। यदि लग्न कमजोर हो और उस पर शनि की दृष्टि हो, तो व्यक्ति के मन में सांसारिक जीवन से विरक्ति पैदा हो सकती है।
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इसके अलावा, यदि लग्न का स्वामी कुंडली में कहीं भी स्थित हो और उस पर शनि की दृष्टि हो, तो यह स्थिति व्यक्ति को साधु बनने की ओर प्रेरित करती है कुंडली का 9वां भाव धर्म और अध्यात्म का प्रतीक है। यदि इस भाव में शनि अकेला हो और किसी अन्य ग्रह की दृष्टि न पड़े, तो व्यक्ति के अंदर बचपन से ही वैराग्य का भाव जागृत हो सकता है।
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अगर चंद्र राशि का स्वामी कमजोर हो और उस पर शनि की दृष्टि हो, तो व्यक्ति सांसारिक मोह-माया से दूर रहता है और साधना की ओर अग्रसर होता है।
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