अध्यात्म व्यक्ति को स्वयं के अस्तित्व के साथ जोड़ने और उसका सूक्ष्म विवेचन करने में समर्थ बनाता है या यूं कहें कि आध्यात्मिक होने का अर्थ है कि व्यक्ति अपने अनुभव के धरातल पर यह जानता है कि वह स्वयं अपने आनंद का स्रोत है।

आज के वातावरण में मनुष्य भौतिकवाद की चकाचौंध से घिरा हुआ है । भौतिकवाद केवल बाहरी आवरण को समृद्ध बना सकता है पर इससे आंतरिक आनंद और उल्लास की अपेक्षा करना हमारी अज्ञानता है. आंतरिक यात्रा तो केवल अध्यात्म के मार्ग पर चलकर ही हो सकती है .

आध्यात्मिक जीवन एक ऐसी नाव है जो ईश्वरीय ज्ञान और आनंद से भरी हुई है यह नाव जीवन के उत्थान और पतन रूपी झंझावातों में भी चलती रहती है। अध्यात्म मनुष्य को आंतरिक रूप से सशक्त बनाता है। लाभ-हानि, मान-अपमान, सुख-दुख, उत्थान-पतन सभी परिस्थितियों में आध्यात्मिक मार्ग का पथिक अविचल रूप से गतिमान रहता है। सांसारिक रुकावटें उसकी इस गति को बाधित ही नहीं कर सकतीं। 

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